भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965: पूरी कहानी
पृष्ठभूमि
1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, जिसे द्वितीय कश्मीर युद्ध भी कहा जाता है, मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर के विवादित क्षेत्र को लेकर लड़ा गया। 1947-48 के प्रथम कश्मीर युद्ध के बाद कश्मीर का बंटवारा हो चुका था, और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ था। पाकिस्तान ने 1965 में यह माना कि भारत 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सैन्य रूप से कमजोर है और कश्मीर पर कब्जा करने का यह सही समय है। पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया, जिसका उद्देश्य कश्मीर में घुसपैठ कर स्थानीय विद्रोह को भड़काना और भारत से कश्मीर छीनना था।
युद्ध की शुरुआत
अगस्त 1965: ऑपरेशन जिब्राल्टर
पाकिस्तान ने हजारों प्रशिक्षित घुसप bellies को कश्मीर में भेजा, जिन्हें मुजाहिदीन कहा गया। इन घुसपैठियों ने कश्मीर घाटी में छिपकर गुरिल्ला युद्ध शुरू किया, यह उम्मीद करते हुए कि स्थानीय कश्मीरी लोग भारत के खिलाफ विद्रोह करेंगे। लेकिन यह योजना विफल रही, क्योंकि कश्मीरी जनता ने घुसपैठियों का समर्थन नहीं किया और भारतीय सेना को उनकी गतिविधियों की सूचना दी। भारतीय सेना ने तुरंत कार्रवाई की और घुसपैठियों को खदेड़ना शुरू किया।
युद्ध का विस्तार
जब ऑपरेशन जिब्राल्टर असफल हो गया, तो पाकिस्तान ने 1 सितंबर 1965 को जम्मू-कश्मीर के चंब सेक्टर में ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया। पाकिस्तानी सेना ने भारतीय क्षेत्र पर हमला किया और अखनूर की ओर बढ़ने की कोशिश की, जो एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बिंदु था। भारतीय सेना ने इस हमले का कड़ा जवाब दिया और चंब सेक्टर में पाकिस्तानी सेना को रोक दिया।
पंजाब मोर्चा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर युद्ध
पाकिस्तान के हमले का जवाब देने के लिए भारत ने 6 सितंबर 1965 को पंजाब में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर लाहौर और सियालकोट की ओर हमला बोला। इसका उद्देश्य था पाकिस्तानी सेना का ध्यान कश्मीर से हटाना और उनके संसाधनों पर दबाव डालना। भारतीय सेना ने तेजी से लाहौर के पास इच्छोगिल नहर तक पहुंच बनाई, जिससे पाकिस्तान को रक्षात्मक स्थिति में आना पड़ा।
प्रमुख लड़ाइयाँ
1. हाजी पीर दर्रा (कश्मीर): भारतीय सेना ने इस रणनीतिक दर्रे पर कब्जा कर लिया, जिससे पाकिस्तानी घुसपैठ के रास्ते बंद हो गए।
2. असाल उत्तर की लड़ाई (पंजाब): 8-10 सितंबर को भारतीय सेना ने खेमकरण सेक्टर में पाकिस्तानी टैंकों का भारी नुकसान किया। इस लड़ाई को "पैटन कब्रिस्तान" के नाम से जाना गया, क्योंकि पाकिस्तान के कई पैटन टैंक नष्ट हुए।
3. डोगराई की लड़ाई (लाहौर सेक्टर): भारतीय सेना ने डोगराई गांव पर कब्जा कर लिया और लाहौर के करीब पहुंच गई।
4. सियालकोट सेक्टर: यहां दोनों पक्षों के बीच भारी टैंक युद्ध हुआ, जो उस समय का सबसे बड़ा टैंक युद्ध था।
वायुसेना और नौसेना की भूमिका
भारतीय वायुसेना (IAF) ने युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। IAF ने पाकिस्तानी हवाई ठिकानों पर हमले किए और भारतीय सेना को हवाई सहायता प्रदान की। पाकिस्तानी वायुसेना ने भी जवाबी हमले किए, लेकिन IAF का प्रदर्शन बेहतर रहा। भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर हमला किया (ऑपरेशन द्वारका), जिससे पाकिस्तान की नौसैनिक क्षमता को नुकसान पहुंचा।
युद्धविराम और ताशकंद समझौता
22 सितंबर 1965 को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्धविराम लागू हुआ। दोनों पक्षों ने हजारों सैनिकों और नागरिकों को खोया, और युद्ध में कोई स्पष्ट विजेता नहीं उभरा। जनवरी 1966 में, सोवियत संघ की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान ने ताशकंद समझौता पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत:
- दोनों देश युद्ध-पूर्व सीमाओं पर लौट गए।
- भारत ने हाजी पीर दर्रा सहित कुछ कब्जाए गए क्षेत्रों को लौटाया।
- शांति और कूटनीतिक समाधान की बात कही गई।
परिणाम और प्रभाव
1. सैन्य परिणाम: युद्ध में कोई पक्ष क्षेत्रीय लाभ नहीं ले सका। भारत ने अपनी सैन्य ताकत और एकता का प्रदर्शन किया, जबकि पाकिस्तान की रणनीति विफल रही।
2. राजनीतिक प्रभाव: ताशकंद समझौते के बाद भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मृत्यु (11 जनवरी 1966) ने कई सवाल खड़े किए।
3. कश्मीर मुद्दा: कश्मीर विवाद अनसुलझा रहा और दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना।
4. सैन्य सबक: भारत ने अपनी सेना को और मजबूत किया, जिसका असर 1971 के युद्ध में दिखा।
महत्व
1965 का युद्ध भारत के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा थी, जिसमें भारतीय सेना और जनता ने एकजुटता दिखाई। इसने भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की जरूरत को रेखांकित किया। पाकिस्तान के लिए, यह युद्ध उनकी सैन्य रणनीति की असफलता को दर्शाता है। यह युद्ध भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर चल रहे तनाव का एक और अध्याय था, जो आज भी जारी है।
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