भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971, जिसे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण एशिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह युद्ध 3 दिसंबर 1971 से 16 दिसंबर 1971 तक चला और इसका परिणाम बांग्लादेश का स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उदय हुआ। आइए इस युद्ध की पूरी कहानी को हिंदी में विस्तार से समझते हैं:
पृष्ठभूमि
1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद, पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा था: पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश), जो भौगोलिक रूप से 1600 किलोमीटर दूर थे। दोनों हिस्सों के बीच सांस्कृतिक, भाषाई और आर्थिक अंतर थे। पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषा बोली जाती थी, जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू को प्राथमिकता दी जाती थी।
भेदभाव और असंतोष
- पूर्वी पाकिस्तान की आबादी पश्चिमी पाकिस्तान से ज्यादा थी, लेकिन राजनीतिक और आर्थिक शक्ति मुख्य रूप से पश्चिमी पाकिस्तान के पास थी।
- बंगालियों को सरकारी नौकरियों, सेना और संसाधनों में कम प्रतिनिधित्व मिलता था।
- 1952 में भाषा आंदोलन (भाषा आंदोलन) के बाद से बंगालियों में अपनी पहचान और अधिकारों के लिए जागरूकता बढ़ी।
1970 का चुनाव और संकट
1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए। शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान में भारी जीत हासिल की और उन्हें सरकार बनाने का अधिकार मिला। लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल याह्या खान और जुल्फिकार अली भुट्टो ने सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया। इससे पूर्वी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
ऑपरेशन सर्चलाइट
25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में "ऑपरेशन सर्चलाइट" शुरू किया। यह एक क्रूर सैन्य अभियान था, जिसमें बंगालियों पर अत्याचार किए गए। लाखों लोग मारे गए, महिलाओं पर अत्याचार हुआ, और करोड़ों लोग शरणार्थी बनकर भारत में आ गए। इस नरसंहार ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम को जन्म दिया।
भारत की भूमिका
- शरणार्थी संकट: 1971 तक लगभग 1 करोड़ बंगाली शरणार्थी भारत में आ गए, खासकर पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में। इससे भारत पर आर्थिक और सामाजिक दबाव बढ़ा।
- मुक्ति बाहिनी का समर्थन: भारत ने बंगाली गुरिल्ला संगठन "मुक्ति बाहिनी" को प्रशिक्षण, हथियार और समर्थन दिया। मुक्ति बाहिनी ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ छापामार युद्ध लड़ा।
- राजनीतिक दबाव: भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इस संकट का हल निकालने की अपील की, लेकिन ज्यादा समर्थन नहीं मिला।
युद्ध की शुरुआत
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत के पश्चिमी हिस्सों में कई हवाई ठिकानों पर बमबारी की। जवाब में भारत ने भी पूरे बल के साथ युद्ध की घोषणा कर दी। यह युद्ध दो मोर्चों पर लड़ा गया: पूर्वी मोर्चा (पूर्वी पाकिस्तान) और पश्चिमी मोर्चा (पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा)।
पूर्वी मोर्चे पर युद्ध
- भारतीय सेना ने मुक्ति बाहिनी के साथ मिलकर तेजी से पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश किया।
- भारतीय सेना की रणनीति बेहद प्रभावी थी। उन्होंने नदियों और दलदली इलाकों को पार करते हुए तेजी से ढाका की ओर बढ़त बनाई।
- 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।
पश्चिमी मोर्चे पर युद्ध
- पश्चिमी मोर्चे पर भारत और पाकिस्तान के बीच भारी लड़ाई हुई, खासकर पंजाब, राजस्थान और कश्मीर में।
- भारतीय सेना ने कई इलाकों में पाकिस्तानी सेना को पीछे धकेला, लेकिन इस मोर्चे पर कोई निर्णायक जीत नहीं हुई।
युद्ध का अंत और परिणाम
- 16 दिसंबर 1971 को युद्ध समाप्त हुआ। यह दिन अब बांग्लादेश में "विजय दिवस" (Bijoy Dibosh) के रूप में मनाया जाता है।
- बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया, और शेख मुजीबुर रहमान इसके पहले नेता बने।
- पाकिस्तान को भारी हार का सामना करना पड़ा, और उसकी सैन्य ताकत कमजोर हुई।
- भारत ने इस युद्ध में अपनी सैन्य और कूटनीतिक ताकत का प्रदर्शन किया।
महत्वपूर्ण आंकड़े
- युद्ध केवल 13 दिन चला, जो आधुनिक इतिहास में सबसे छोटे युद्धों में से एक है।
- लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जो इतिहास में सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण माना जाता है।
- भारत ने लगभग 3,900 सैनिक खोए, जबकि पाकिस्तान को 9,000 से ज्यादा सैनिकों की हानि हुई।
युद्ध के बाद
- बांग्लादेश में शेख मुजीबुर रहमान की सरकार बनी, लेकिन 1975 में उनकी हत्या के बाद देश में अस्थिरता बढ़ी।
- भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में शिमला समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों ने शांति और सहयोग की बात की।
- इस युद्ध ने दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को बदल दिया और भारत को एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में स्थापित किया।
निष्कर्ष
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध न केवल एक सैन्य संघर्ष था, बल्कि यह मानवता, स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के लिए लड़ी गई एक जंग थी। इस युद्ध ने बांग्लादेश को आजादी दिलाई और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को लंबे समय तक प्रभावित किया। यह युद्ध आज भी दोनों देशों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
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